रायपुर/बिलासपुर
15 करोड़ की मंजूरी मिलने के बाद भी छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान सिम्स में नई मशीनें नहीं आ सकीं हैं. पिछले कई माह से पुरानी मशीनों से ही मरीजों की जांच कि जा रही है. इस मामले में संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट ने राज्य शासन से जवाब तलब किया है. चीफ जस्टिस ने पूछा कि, 15 करोड़ के बजट के बाद भी नई मशीनें अब तक क्यों नहीं आई. सिम्स में चिकित्सा सुविधाओं को आधुनिक बनाने शासन ने 15 करोड़ रुपए की लागत से मशीनें खरीदने की मंजूरी तो दे दी है, लेकिन मंजूरी को चार माह बीत जाने के बावजूद अब तक एक भी मशीन यहां नहीं पहुंच पाई है. इस स्थिति में डॉक्टरों को पुराने उपकरणों के सहारे ही काम चलाना पड़ रहा है.
सिम्स प्रबंधन ने चिकित्सा सेवाओं को सुदृढ़ करने और मरीजों की जांच प्रक्रिया तेज करने के उद्देश्य से शासन को 15 करोड़ रुपए के दो अलग-अलग प्रस्ताव भेजे थे. इनमें एक प्रस्ताव 10 करोड़ का और दूसरा 5 करोड़ रुपए का था. शासन से मंजूरी मिलने के बाद भी अब तक मशीनों की आपूर्ति शुरू नहीं हो सकी है. इस बीच जरूरत को देखते हुए सिम्स ने एसईसीएल के सीएसआर मद और अन्य स्रोतों से 66 लाख रुपए की लागत से सोनोग्राफी, डायलिसिस समेत कुछ अन्य मशीनें खरीदी हैं, लेकिन यह संख्या जरूरत के मुकाबले बेहद कम है. यहां कार्यरत डॉक्टरों का कहना है कि, नई मशीनें मिलने से कम समय में अधिक मरीजों की जांच संभव होगी और इलाज की गुणवत्ता में भी सुधार आएगा इस आशय की समाचार रिपोर्ट मंगलवार को प्रकाशित होने के बाद हाईकोर्ट ने इस पर संज्ञान लिया है.
पुरानी मशीनों से टेस्ट का परिणाम भी प्रभावित
मंगलवार को चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बोंडी गुरु की डिवीजन बेंच में इस मामले को संज्ञान में लेकर जनहित याचिका के तौर पर सुनवाई की गई. चीफ जस्टिस ने कहा कि, सिम्स इस अंचल का एक मात्र शासकीय मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल है, दूर दूर से मरीज उपचार के लिए आते हैं. जब सरकार ने बजट दे दिया है, तब मशीनें लाने में क्या परेशानी है. पुरानी मशीनों से टेस्ट का परिणाम भी प्रभावित होगा. कोर्ट ने शासन से पूछा कि यहां व्यवस्था में कब सुधार होगा. आप क्या कर रहे हैं, आम मरीजों के इलाज के लिए क्या योजना है. डीबी ने शासन से शपथ पत्र पर जवाब तलब करते हुए इस मामले को मानिटरिंग के लिए तय करते हुए अगली सुनवाई अक्टूबर माह में निर्धारित कर दी है.