नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से अस्पतालों में सीसीटीवी लगाने और शौचालयों व अलग विश्राम कक्षों के निर्माण में धीमी प्रगति पर नाराजगी जताई। साथ ही, राज्य सरकार को काम को 15 अक्टूबर तक पूरा करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ट्रेनी डॉक्टर से जुड़े मामले का स्वत: संज्ञान लेकर शुरू किए गए मामले पर सुनवाई कर रहा था।
न्यायालय ने पूर्व के अपने आदेश को दोहराया कि किसी भी मध्यस्थ मंच को पीड़िता का नाम और फोटो प्रकाशित करने की अनुमति नहीं है। सुनवाई शुरू होते ही वकील वृंदा ग्रोवर ने चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ को दलीलें सुनाईं। उन्होंने बताया कि मृत ट्रेनी डॉक्टर के माता-पिता सोशल मीडिया में बार-बार उसके नाम और तस्वीरों का खुलासा करने वाली क्लिप से व्यथित हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस मुद्दे पर पहले ही आदेश पारित कर चुकी है और आदेश को लागू करना कानून लागू करने वाली एजेंसियों का काम है। कोर्ट ने पूर्व के आदेश को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह सभी मध्यस्थ मंचों पर लागू होता है।
पीठ ने कहा कि सीबीआई की जांच में ठोस सुराग मिले हैं और उसने कथित बलात्कार-हत्या व वित्तीय अनियमितताओं दोनों पहलुओं पर बयान दिए हैं। सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि आरजी कर अस्पताल में वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों का सामना कर रहे कितने कर्मी कार्यरत हैं, जिनके खिलाफ जांच की जा रही है। अदालत ने उचित कार्रवाई के लिए राज्य सरकार के साथ जानकारी साझा करने को कहा।